Tuesday, July 16, 2013

चलो आओ अमर हो जायें ....

आज की ताज़ा खबर राहुल गाँधी को भेजा गया आखिरी तार !!! आखिरी तार भेजा गया, चलो अच्छा है , अब इन्टरनेट के ज़माने में तार का भला क्या काम रह गया था…   खबर सच में काफी रोचक थी पर राहुल गांधी को ही क्यूँ भेजा गया ? यार ठीक है भाई हम लोग छोटे कस्बों और गांवो में पले बढे, हम लोग ही इस सुविधा का सबसे अधिक इस्तेमाल भी करते थे। तार का अगर अंत हुआ तो हमें सच में दुःख हुआ , पर दुःख तो पचीस पैसे के सीके के बंद होने पर भी हमें हुआ था। ऐसे कोई खबर नहीं सुनी गयी की आखिरी सिक्का मनमोहन सिंह या गांधी परिवार को दिया गया। अरे भाई वोह सिक्का इतना छोटा था की उसपर किसी भी गांधी की तस्वीर छापते तो दिखती भी नहीं, इसीलिए उसे चुपचाप गुमनामी में धकेल दिया गया ... 
                                  अपने नेताओ को अमर करने का रिवाज़ इतने पागलपन की हद तक पहंच चुका है, की मायावती की मूर्तियों से लेकर गांधी मार्ग , गांधी हवाई अड्डे , सरकारी गाँधी परियोजनाएं  और सबसे निकट भविष्य में तो राजीव गांधी के ही जन्म दिन पर खाद्य सुरक्षा को , जनता को समर्पित किया जा रहा है, इन नेताओ का बस चले तो हमारे खाने को भी अपने नेताओ का नाम दे दे ... असल में होना यह चाहिए  की जितने घोटाले होते है, उनका नाम नेताओ पर होने चाहिए , जैसे कलमाड़ी घोटाला , राजीव-क़ुअत्रोचि घोटाला , इंदिरा गांधी आपातकाल ,    1984 के कांग्रेस सिख दंगे , कांग्रेस कोयला घोटाला , चिताम्बरम -रजा घोटाला और या फिर बंसल -भतीजा घोटाला ...  ताकि उनकी दरिंदगी और उनके समाज के खिलाफ किये काम जनता को याद रहे।
                              नेता अपनी अमरता सुनिश्चित करने के लिए किस हद तक जा सकते है ... अगर सच में देखना है तो यही कहना चाहिए - "पधारो म्हारे देश "

Monday, June 17, 2013

मुफ्त की चाय

ठाकुर साहब और शर्मा जी बरसों पुराने दोस्त हैं  , और अक्सर शाम को गांधी चौक की एक  किरयाने की दूकान में गपशप मारने पहुँच जाते हैं। ज़िन्दगी भर दोनों दोस्त शायद ही कभी किसी राजनीतिक  दल से जुड़े , पर रिटायरमेंट के बाद, समय गुजारने  के लिए देश की राजनीति पर घंटों बहस  करते, और दुकानदार दोनों की  हाँ में हाँ मिलाता और चुपचाप मुस्कुराता रहता। दुकानदार को शाम ढले दोनों का इंतज़ार रहता है , क्यूंकि कम से कम चार  कप मुफ्त की चाय मिल जाती है और  वक़्त भी कट जाता है। 
                                       परन्तु  जब आज ठाकुर साहब दूकान में पहुंचे तो आज  माजरा कुछ बदला हुआ था , ठाकुर साहब आज कुछ  उदास  लग रहे थे,  हाथो में छाता लेकर वे चुपचाप खड़े हो कर शर्मा जी का इंतज़ार कर रहे थे , उनको देख कर दुकानदार अशोक बोला- "अरे ठाकुर साहब आईये- आईये बेठिये, शर्मा जी भी आते होंगे "...  ठाकुर साहब ने  कुछ  बिना कहे, बस मुस्कुरा कर अशोक की और देखा। अशोक ने भांप लिया था की आज ठाकुर साहब कुछ तो परेशान हैं, पर उसे ये भी पता था की वे सिर्फ शर्मा जी से ही अपनी ज़िन्दगी के दुःख दर्द को बांटते  है। अभी अशोक सोच ही रहा था की  वो  कुछ कहे , शर्मा जी भी आ पहुंचे । 
                                      शर्मा जी तो आज अपनी  धुन में थे, आते ही बस शुरू  हो गए- "अब बताओ , बज गया न भाजपा का बाजा !!" शर्मा जी तो पूरे  जोश में थे, अभी ठाकुर साहब  कुछ कह  पाते, शर्मा जी बोले -"अरे भाजपा का एनडीए तो चुनावो से पहले ही टूट गया,चले थे सरकार बनाने!!" शर्मा जी की बातो में कटाक्ष और व्यंग झलक रहा था। परन्तु ठाकुर साहब ने कोई उत्तर नहीं  दिया, और चुप चाप  सुनते रहे।जबकि होता यूँ  था, की बहस शुरू हो  जानी  चाहिए थी , पर आज अशोक और शर्मा जी दंग  थे, क्यूंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। 
                                            शर्मा जी ने ठाकुर  साहब  की  आँखों में देखा, और पूछा - "यार सब ठीक ठाक तो है ? आज कुछ गुमसुम लग रहे हो".. यह सुनते ही ठाकुर साहब का चेहरा भाव् विहिल हो आया, ना जाने कब उनकी आँखों में नमी भर आई, जैसे वो खुद चाह रहे थे, की कोई उनका हाल पूछे, मुश्किल से खुद को सँभालते हुए बोले -  "आज डॉक्टर के पास गया था,वो  मस्तिष्क की जांच करवाने के लिए,  कुछ टेस्ट कल हुए थे, आज रिपोर्ट आ गयी है"... इतना कह कर वो चुप हो गए और शुन्य में ताकते हुए महसूस हुए। शर्मा जी को आत्मग्लानि हो रही थी। व्यग्रता से शर्मा जी ने किसी अनहोनी की आशंका से शंकित हो कर पुछा- "अच्छा!!क्या कहा डॉक्टर ने ? अरे सब ठीक तो है ना?" 
                    "शर्मा जी, मुझे मस्तिष्क में ट्यूबर क्लोसिस है, और दुसरे  चरण में है "- ठाकुर साहब सिर झुका कर बोले, " मै  अब फिर यहाँ नहीं आऊंगा, डॉक्टर ने मुझे आराम करने  को कहा है, और जब से ये बात बहु को पता चली है, उसने तो बात करना भी बंद कर दिया है, और आज सुबह मैंने बेटे को बहु से कहते सुना की पापा से बच्चो और खुद को दूर रखना, जल्दी ही में इनके अलग रहने का कुछ करता हूँ और तो और आज तो बहु ने चाय तक को नहीं पूछा। रोज़ समक्ष  और आयशा(पोता -पोती) मेरे पास आ कर कहानियां सुनने  आते थे, पर आज नहीं आये".. 
              इस पर शर्मा जी और अशोक एक दम सन्न  रह गए थे। रिटायरमेंट के बाद ठाकुर साहब अपने बेटे के यहाँ रह रहे थे, और यह मकान भी ठाकुर साहब ने अपने बेटे को खरीद कर दिया था, पत्नी का देहांत हुए ७ साल हो गए थे, और अब उनकी दुनिया में चंद लोग रह गए थे , जिनसे वो मिलते जुलते थे , और बीमारी के पता चलने के बाद ठाकुर साहब को अपनी दुनिया सिमटते हुए नज़र आ रही थी, शायद इसीलिए वो बहुत दुखी थे।
          शर्मा जी ने अपने आप को सँभालते हुए कहा -" अरे बस इतनी सी बात !!! यार पहली बात तो यह है की टीबी शरीर में कही भी हो सकता है , और हर टीबी संक्रामक हो यह जरुरी नहीं है। रही बात दिमाग के टीबी की, तो जहा तक मुझे पता है टीबी की यह किस्म  संक्रामक  बिलकुल नहीं होती। और ये तो सच है की तुमको आराम करना चाहिए और तुरंत इसका इलाज़ शुरू करना चाहिए, जो तुमने कल से शुरू कर ही दिया है। बाकी ७ महीने की दवाई को रोजाना बिना भूले खाना, तुम एक दम ठीक हो जाओगे। " 
         शर्मा जी ने उत्साहित हो कर कहा -" रही बात तुम्हारे बहु बेटे  की तो शायद इतना पढ़ा लिखा होने के बाद भी वो इतनी गंवार बात कैसे कर सकते है। मै समझाऊंगा उन दोनों को! तुम चिंता मत करो, तुम भले ही यहाँ ना आओ, अरे हम आ जायेंगे तुम्हारे पास चाय पीने के लिए, आखिर अगले चुनाव की चर्चा कौन करेगा ? मोदी और नतिश  हो  या  एनडीए बनाम यूपीए ?"
      ठाकुर साहब की आँखों से अश्रु बह निकले, वे उठे और शर्मा जी को गले लगा लिया, दोनों मित्र भावुक हो उठे। ठाकुर साहब पर इन बातो का इतना गहरा असर हुआ की वो सारा दुःख और मानसिक तनाव का बोझ भूल ही गए। अशोक भी दोनों की मित्रत्ता को देख कर स्तब्ध और प्रसन्न था, शायद ही उसने कभी इन दोनों की मित्रत्ता की गहराई को समझा था। 
         उत्साह और प्रसन्ता में अशोक ने जोर से चाय वाले को आवाज दे कर कहा - "अरे भगतु !!! ३ स्पेशल चाय!! जल्दी ले कर आजा , आज पैसे में दूंगा। "  और उसकी इस बात पर तीनो एक साथ ठहाका मार कर हंस पड़े,  मानो कुछ हुआ ही ना हो,.....
           
            

Tuesday, June 4, 2013

घटिया राजनीति से त्रस्त हिमाचली उद्योग और बेरोजगार

चुनाव  आते है , नेता भी आते है .. चुनाव चले जाते है और नेता तो फिर दिखते नहीं ..हाँ अखबारों में आरोप प्रत्यारोप  करते हुए उनके बयान  मिल जाते है। ज्यादातर प्रेस कांफ्रेंस  या तो रेस्ट हाउस या किसी नामी होटल में आयोजित की जाती है .. हमारे पत्रकार बंधू  वहां निमंत्रण मिलने पर  पहुँच जाते है।थोड़ी गपशप और चाय नाश्ते का मज़ा लेकर प्रेस विज्ञप्ति को   को भेज दिया जाता है।  और यह प्रक्रिया पक्ष और विपक्ष के क्रियाशीलता को दिखाती है, क्यूंकि  ज़मीनी स्तर पर काम हुआ हो या न हुआ हो , अखबारों में फोटो और बयान ज़रूर होने चहिये।
आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा , यह  तो सब को ज्ञात है यहाँ ये सब लिखने का क्या ओचित्य है ? तो चलिए आप को एक परम सत्य से मिलाते है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर राज्य ,उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्य है जो हिमालय की गोद में बसे हुए है , यहाँ अधिकतर व्यक्ति या तो कृषि पर निर्भर करते है या सेनाओ में कार्यरत है , हालाँकि  अब यहाँ के युवा पढ़ लिख कर बाहरी राज्यों और विदेश में नाम कमा  रहे है, फिर भी अधिकतर युवा बेरोज़गारी के दंश को झेल रहे है। पहाड़ी राज्य होने के कारण यहाँ आय के साधन तो सिमित है साथ ही ड्रग माफिया भी कई वर्षो से यहाँ पांव पसारने लगा है। कुछ  वर्ष पहले केंद्र सरकार ने हिमाचल को उन्नति का अवसर दिया जब हिमाचल प्रदेश में उद्योगों को अच्छी खासी रियायते दे कर, लुभावना अवसर दिया , जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप बहुत से उद्योगों ने हिमाचल में खूब पैसा लगा कर काफी  बड़ी फेक्टरियाँ और प्लांट लगाये। सस्ती बिजली और रियायतों के कारण यहाँ एक तरफ तो उद्योग फले फुले और रोज़गार के भी बहुत सारे अवसर पैदा हुए। यह सब कुछ वर्षों तक ठीक चलता रहा.. मगर कुछ समय पहले अचानक केंद्र सरकार ने सब रियायतों की अवधि को घटा कर समाप्त कर दिया।

                                  केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और राज्य में भारतीय  जनता पार्टी का नेत्रत्व था। केंद्र सरकार के इस अचानक हुए फैसले से हर कोई स्तब्ध था। दुःख की बात यह थी की केंद्र सरकार में हिमाचली मंत्री आनंद शर्मा और वीरभद्र थे , जो हालाँकि कांग्रेस सरकार में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व  कर रहे थे, परन्तु उनकी चुप्पी संदिग्ध थी। प्रश्न था क्या यह राजनीति से प्रेरित फैसला था, या इसके पीछे कोई और भी कारण  था। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कई बार दावे किये कि  केंद्र की कांग्रेस सरकार,  भाजपा शाषित  राज्यों को जान बुझ कर   प्रताड़ित कर रही है। अब कौन सचा था और कौन झूठा यह तो पता नहीं , पर प्रेस कांफ्रेंसो का जो दौर शुरू हुआ वो भाजपा सरकार के जाने तक चलता रहा। हिमाचल के उद्योगिक क्षेत्र आज लगातार उद्योगों के पलायन के कारण , भुतिया कसबे बनते जा रहे है और बेरोज़गारी फिर अपने चरम पर है। आज भी प्रेस कांफ्रेंसें  हो रही है , रोज पैसा बहाया जाता है मगर सिर्फ बयानो पर, काम तो शायद चुनाव से ८ महीने पहले  शुरू होते है, क्यूंकि हम  हिंदुस्तानी  लोग वर्तमान में किये कार्यो को ही याद रखते है, और पिछले सभी घोटालो और दगाबाजियो को आसानी से भूल जाते है। नेता अक्सर चुटकी  लेते है की जनता की यादाश्त  बहुत कमज़ोर होती है। जो काफी हद तक सच भी है।  
 
                        और अब "कोढ़ में खुजली" की तरह  अचानक हिमाचल सरकार ने बिजली के दरो को सत्रह  फीसदी बड़ा कर बचे खुचे उद्योगों की भी तालाबंदी की तयारी कर ली है , जो लगातार घाटा उठा रहे है। एक बात तो समझ में आती है की "राजनीति " इस देश की लगातार बदतर होती स्थिति का कारण  नहीं है , बल्कि  "घटिया राजनीति करने  वाले नेता"  इसका कारण है। अब किसी चुने गए नेता से ये शिकायत करें तो वो कहता है आवाज़ उठाओ और जब आवाज़ उठाओ, तो पुलिस को भेज कर डंडे मरवाए जाते है। प्रश्नकाल में प्रश्न उठाये जाते है जो  स्थानीय स्तर की समस्याओ पर केन्द्रित होते हें, परन्तु विकराल समस्याओ जैसे बेरोगाज़री और इसके कारणों का ज़िक्र शायद ही कभी होता है। कह दिया जाता है हमारे पास संसाधन नहीं है , हम कुछ नहीं कर सकते या कहा जाता है विचार विमर्श चल रहा है।   
 
                तो अब क्या बेरोजगार भी नक्सलियों की तरह हथियार  उठा ले ? क्यूंकि संसाधनों की कमी और बेरोजगारी भी नक्सली हिंसा का  कारण है।सच कहु तो  हम इस वास्तविकता के बहुत पास पहुँच गए है, बस फरक इतना है हमारे संस्कार हमें इसकी इज़ाज़त नहीं देते , परन्तु कब पापी पेट, इन त्रस्त  बेरोजगारों को हिंसा का रास्ता दिखा दे , कोई बता नहीं सकता।

Wednesday, May 29, 2013

बस पन्ने पलटते जाओ.. कुछ करो मत....

सुबह के साढ़े पांच बज रहे थे , कल इतना थक गया था, की पता नही कब आंख लग गयी.. थकान में यह भी महसूस नही हुआ, की मैं बिस्तर के बजाय कुर्सी पर ही सो गया था... सामने पानी की आधी भरी बॉट्ल रखी हुई थी... आंखे मलते हुए , ज़ोर से लम्बी सांस लेकर् वापिस सोने की मुद्रा में आ गया, तभी अचानक कुछ खिड़की से उडता हुआ आया, और पानी की बॉट्ल से टकराया, बॉट्ल तो गिरी और साथ में मेरी भी तंद्रा जैसे टूट गयी... मैं यह जानने की कोशिश कर रहा था, की आखिर हुआ क्या? इधर उधर देखने पर समझ में आया, की अखबार वाले ने कुछ ज्यादा ही जोर से अखबार फेंका था.. जो सीधा आकर बॉट्ल से टकराया.. बॉट्ल का ढक्कन बंद होने के कारण पानी तो नही गिरा पर, मैं ज़रूर जाग गया... ज़ोर से एक अंगड़ाई लेकर में उठा और अखबार उठा कर गॅलरी में आकर बेठ गया... अखबार का धागा खोलकर.. जैसे ही पहली खबर पढी.. "नक्सलवादीयो के हमले में 27 बेकसूर लोगो की मौत".. ज़रा नज़र दूसरी और घुमाई तो "मैच फिक्सिंग में श्रीसंत और चण्डीला पुलिस हिरासत में" ... एक जगह बलात्कार की घटना की खबर थी... मैं कुछ अछा ढूंढने के लिये पन्ने पलटता गया... मगर हर पन्ना तो जैसे मुझे चिढा रहा था, हत्या , बलात्कार, लुट, आतंकवाद और भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पर बहुत सारे बुद्धिजीविओ के विचार सभी पन्नो में भरे पड़े थे... यू लग रहा था मानो सारी बुराई एक ही दिन में दुनिया को बस खा जाने वाली है... चीन के बारे में सोचो तो लग रहा है की जब नक्सलवादीयो ने 27 नेता टपका डाले. हमारी बिसात है ही क्या? चीन हमारी तो भुजिया ही बना देगा... धीरे धीरे समझ में आ रहा है, हमारे नेता भी अब समझ रहे है की हालात देश के सीमाओ के बजाय, देश के भीतर ज्यादा खराब हें. हिन्दू मुस्लिम वोट बैंक की लड़ाई को पीछे छोड़ कर अब हमारी अंतरिक सुरक्षा एक सचे खतरे से वाकिफ हो रही है. अब बेरोज़गारी की बात कितनी भयानक हो रही है, यह भी समझ आ रहा है, मैं जिस कंपनी में काम करता हु, वहा से 30% लोग निकाल दिये गये है, और 30% खुद जा चुके है.. हम उन बाकी बचे हुए लोगो में है जिन्हे ना कही कोई नौकरी मिल रही है, और तीन महीने में एक बार तनख्वाह मिल जाती है.मगर में कर भी क्या सकता हु , बस अखबार के पन्ने पलटता हुआ, कभी राजनीति तो कभी अर्थव्यवस्था को कोसता हुआ, फिर एक नये दिन की शुरुआत कर रहा हु. जैसे बाकी दुनिया करती है..

Saturday, May 4, 2013

हिंदी साहित्य का मेरे जीवन में योगदान...

हिंदी साहित्य का  मेरे जीवन में कितना योगदान है , इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है  कि  मैंने पढना सीखते हुए शायद ही  कभी कोई कठिनाई महसूस की , कारण शायद मेरी उत्सुकता , और कई अलग अलग करक रहे, मुझे आज भी याद है , मै प्रथम कक्षा में था , जब हम गर्मियों की छुट्टिया बिताने के लिए , शिमला में अपने ननिहाल जाते थे , मेरे छोटे मामा को कॉमिक्स पढने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था, किसी भी कॉमिक्स का कोई नया संस्करण उनके पास उपलब्ध  रहता था, परन्तु नाना नानी को उनका यह शौक अनुचित लगने की वजह से वो हमेशा अपना कॉमिक्स का खजाना छुपा कर रखते थे, कभी कभार उनकी कोई फटी पुरानी कॉमिक्स मिल जाती तो में कॉमिक्स के चित्रों को देख कर काफी उत्साहित हो जाता, मै  चित्रों को देख कर कथा को समझने का पर्यत्न करता,  फिर थोडा पढने का भी प्रयत्न करता।
                                                       धीरे धीरे मेरी रूचि कथा और साहित्य में बढती गयी। मुझे आज भी याद है , मै  दूसरी कक्षा में था , जब मेरे पिताजी मेरे साथ रामपुर बुशेहर के बाज़ार में किसी काम के लिए आये थे , मै  चलते चलते एक पुस्तक की दूकान पर रुक गया , पिताजी ने थोड़ा रुक कर देखा , और मै  बस बोल पड़ा-"मुझे वो कॉमिक्स चाहिए ".. पिताजी ने पहले तो मुझे टालते हुए कहा -" अरे रहने दो , कुछ और चाहिए तो बोलो," .. मै  भी अड़ियल था , सो मेरी बात मानते हुए मुझे दस रुपए  की दो कॉमिक्स खरीद कर दी। यह कॉमिक्स राज कॉमिक्स के एक नागराज नाम के चरित्र  की थी , इस चरित्र ने पूरे  विश्व से  आतंकवाद को समाप्त करने की कसम खाई थी ... और यह कहानी उसकी यात्रा के विषय में थी , सच कहु तो मुझे आतंकवाद या किसी अन्य बात का ज्ञान नहीं था। काफी अचरज हुआ की, की संसार में अच्छे लोगो के अलावा , बुरे लोग भी होते है , जो समाज  को सदा खोखला करने की कोशिश में लगे रहते है। मन में कई तरह के प्रशन आते , और इन चरित्रों में एक मित्र का प्रतिबिम्ब दिखता ,जो मुझे सदा यह सिखाने  की कोशिश करता , की सदा अछे का साथ देना चहिये।  मेरे मन में उत्सुकता का एक ऐसा आवेग उठा , की मुझे जहाँ से कोई भी कथा मिलती में उसे जल्दी से पढ़ डालता , फिर उस कथा , उसके चरित्रों के विषय  में सोचते हुए समय निकल जाता। नंदन , चम्पक , नागराज , चाचा चौधरी , ध्रुव , पिंकी और पंजाब केसरी में आने वाली चित्र  कथाएँ , जिनमे जादूगर मेंड्रक और गंजेलाल को पढ़ते हुए मेरा बचपन समाज को समझने लगा। सच कहु तो अपने समकक्ष और समकालीन बच्चों के मुकाबले में आगे निकल गया था।  इस बात का एहसास मुझे तब हुआ  जब हमारे विध्यालय में एक बार पढने की प्रतियोगिता हुई , मै  उस समय तीसरी कक्षा में था, और मैंने उस प्रतियोगिता में अपना नामांकन किया। में मंच पर  जाते हुए, काफी डरा हुआ था , और खासकर में अपने प्रधानाचार्य से काफी डरता था। मेरे प्रधानाचार्य ने मुझे मंच पर  आमंत्रित किया , और हमारी हिंदी की पुस्तक में से एक अध्याय "अल्लादीन का चिराग" से एक भाग पढने के लिए कहा, मै  मंच पर  चढ़ा, और पढना प्रारंभ किया , में उस भाग को मात्र  दो मिनट में पूरी तन्मयता एवं उचारण के साथ पढ़ गया। जब मैंने अंतरा  समाप्त किया तो मेरे विद्यालय के करीब दो सॊ छात्रों ने उत्साह के साथ तालिया  बजाई। जब प्रतियोगिता का नतीजा आया तो मुझे प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था , में बहुत खुश था , क्योंकि मेरे प्रतियोगी मेरे वरिष्ठ थे।
                                                   उस दिन से मेरा उत्साह बढ़ा, मै  अपनी बहन की किताबो को पढता (अपनी किताबो को पढने के बाद )  ..  हिंदी साहित्य का अध्यन करना भी मैंने प्रारंभ किया। पिताजी के पास पंडित दिन दयाल उपाध्याय और अन्य महापुरुषों की जीवन कथाओ का संग्रह था , उन सबको पढ कर  मुझे  काफी जानकारिया  मिली, मै  मात्र अपने पाठ्यक्रम पर निर्भर नहीं कर , जहा से हो सके ज्ञान अर्जित करता। यह सब मेरे लिए काफी ज्ञानवर्धक रहा .. भले ही पढाई में मुझे एक मध्यम छात्र का दर्जा  मिला, पर मुझे इस बात का दुःख नहीं था , बस इतना ज्ञान हो गया था कि अछे अंक प्राप्त करना , हमें जीवन की परीक्षा मै सफलता की गारन्टी नहीं दे सकता और पुस्तकें ही हमारी सची मित्र होती है।
                                आज हिंदी साहित्य को अंग्रेजी और अंतरताने से काफी नुक्सान पहुंचा है। आज हिंदी चित्रकथाए और पुस्तके , पाठको की कमी की वजह से दम तोड़ रही है। कई हिंदी प्रकाशन बंद हो गए है , मुझे चिंता इस बात की है , की हमारी आने वाली पीढ़िया कही हमारे हिंदी साहित्य की महता को भूल ना जाये , आज भी  कई हिंदी प्रकाशन जैसे , गीता प्रेस  और राजा  पॉकेट बुक्स हमारी हिंदी साहित्य की उमीदो को ज़िंदा रखे है।
                             किसी भी भाषा का अपना एक वर्ग होता है, पर आज अंग्रेजी के साहित्यकारों की तुलना में , हिंदी के रचनाकार सिमट गए है , और जो कुछ नए आ भी रहे है , वो धन और उत्साह की कमी की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते।
फिर भी मुझे लगता है की हमारे वर्ग  में ऐसे लोग है , जो हिंदी और हिंदी साहित्य को दुर्लभता से बचाने में लगे हुए है। आईये हम सब हिंदी साहित्य को बचाने  के लिए एक जुट  हो कर कदम उठाये ,..  हम अपनी जड़ो को भूल कर स्वर्णिम  भविष्य नहीं बना सकते। एक गीत की पंक्तिया याद आती है-- "हिंदी है हम , वतन है हिन्दुस्तान हमारा "   जय हिन्द .. 

Thursday, March 7, 2013

SemIndia DNA-A212 modem update patch

Dear Friends,

       SemIndia may have got shutdown but its modem for MTNL /BSNL are still in market. Here is the latest patch for its broadband modem DNA-A212.. Enjoy!!! :)

DNA-A212 Software Update



Regards
Sandeep

Monday, February 18, 2013

उग्रवादी की कब्र पर लगेंगे मेले। यह कांग्रेस का शहीदों को इनाम होगा।।

उग्रवादी की कब्र पर लगेंगे मेले।
यह कांग्रेस का शहीदों को इनाम होगा।।

वो तोड़ेंगे संसद फिर एक दिन।
वो दोहराएंगे मुंबई फिर  एक दिन।।
फिर कोई सैनिक कुर्बान होगा।
लेकिन उग्रवादी की कब्र पर लगेंगे मेले।
यह कांग्रेस का शहीदों को इनाम होगा।।

कभी मुशर्रफ़ , कभी  हाफ़िज़ होगा 
सर काटने वाला ,कोई पाकिस्तानी मुजाहिद होगा।
मगर कत्लेआम ,किसी इंदिरा के मरने पर  होगा ..
मरेंगे हम हिंदुस्तानी , गरीबी से ..
मगर मुद्दा ए  कश्मीर , नेहरु का भारत को  इनाम होगा।।
उग्रवादी की कब्र पर लगेंगे मेले।
यह कांग्रेस का शहीदों को इनाम होगा।।

कभी बोफोर्स , कभी  कोयले का बदनुमा दाग होगा।
कभी खेलो का, कभी मोबाइल का राग होगा।।
वो नेता  तिहाड  में भी जियेंगे शान से।
बाहर  भूख से मर रहा , हिंदुस्तानी बेहिस्साब होगा।।
उग्रवादी की कब्र पर लगेंगे मेले।
यह कांग्रेस का शहीदों को इनाम होगा।।

संतो को उग्रवादी , उग्रवादी को श्री कहने का रिवाज़ होगा।
साध्वी को डाकू , उग्रवादी को "शहीद-ए-वतन"  कहने का रिवाज़ होगा।
उग्रवादी की कब्र पर लगेंगे मेले।
यह कांग्रेस का शहीदों को इनाम होगा।।

--संदीप ठाकुर  

Saturday, February 2, 2013

Debating the Claims of Idiot Zakir Naik: A Critical Analysis

Debating the Claims of Dr. Zakir Naik: A Critical Analysis

I recently came across a YouTube video of Dr. Zakir Naik, an Islamic scholar known for his deep knowledge of various religions. The video was centered around the debate on the Ram Temple and the destruction of the Babri Mosque in Ayodhya. As I listened to his lecture, I couldn't help but question some of the claims he made.

In the video, Dr. Naik made several controversial points, including disputing the historical accuracy of the Ramayana and the Mahabharata, as well as the events surrounding the destruction of the Babri Mosque. He also expressed his belief that there are no versions of the Quran, and that Hindu religious texts do not permit idol worship.

While it is essential to engage in open dialogue and critical analysis of religious texts and beliefs, it is equally important to maintain a respectful and objective approach to such discussions. In this blog post, I would like to address some of the questions that arise from Dr. Naik's claims, as well as present alternative perspectives for consideration:

  1. Dr. Naik states that there are over 300 versions of the Ramayana. Has he read any of these versions, and if so, has he considered the central themes of these texts, such as the victory of good over evil, ethics, and truth?
  2. Regarding his claim that the Mahabharata is a fabricated story, can Dr. Naik provide evidence to support this assertion? Can he address the numerous local stories and historical sites associated with the epic, such as Hadimba in Manali, Shri Krishna, Mathura, and Dwarka?
  3. Dr. Naik claims that there are no versions of the Quran, but how many languages has the Quran been translated into throughout history? Considering that only a small number of people in certain regions can read Arabic, how can the text be understood and interpreted without translations?
  4. While Dr. Naik asserts that Hindu religious texts do not permit idol worship, how does he reconcile this with the Islamic practice of visiting the Kaaba and performing rituals that may be seen as contradictory to Quranic teachings?
  5. Dr. Naik questions the feasibility of the Kurukshetra War, as described in the Mahabharata, based on the size of the battleground. Has he considered that Kurukshetra may have been a much larger area during the time of the war, and that it involved not only the Kauravas and Pandavas but also their allies from across the continent?
  6. Dr. Naik argues that Hinduism does not have a single god, but has he considered the concept of "Aadi Shakti" or the "Eternal Source of Energy," which represents the various incarnations of divinity in Hinduism?
  7. Dr. Naik claims that only Islam is authentic, but does this not go against the Quran's teachings of love and respect for all people? How can he reconcile his views with the fact that other religions also believe in a divine entity, albeit with different names and forms?
  8. Dr. Naik's understanding of the term "kaafir" seems to be limited to non-believers. However, could it be argued that those who commit acts of violence in the name of religion are the true "kaafirs"?

In conclusion, while it is crucial to engage in dialogue about religious beliefs and practices, it is essential to maintain a balanced and respectful approach to such discussions. It is important to question the claims made by religious scholars like Dr. Zakir Naik and consider alternative perspectives to foster a more inclusive and understanding world.

Secret of Universe

  Secret our universe... 10 Directions, 26 dimensions 18 Directions, No Dimension can exist 36 Dimensions, no direction can exist.. I dont h...