हिंदी साहित्य का मेरे जीवन में कितना योगदान है , इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि
मैंने पढना सीखते हुए शायद ही कभी कोई कठिनाई महसूस की , कारण शायद मेरी
उत्सुकता , और कई अलग अलग करक रहे, मुझे आज भी याद है , मै प्रथम कक्षा में
था , जब हम गर्मियों की छुट्टिया बिताने के लिए , शिमला में अपने ननिहाल
जाते थे , मेरे छोटे मामा को कॉमिक्स पढने और इकट्ठा करने का बहुत शौक था,
किसी भी कॉमिक्स का कोई नया संस्करण उनके पास उपलब्ध रहता था, परन्तु नाना
नानी को उनका यह शौक अनुचित लगने की वजह से वो हमेशा अपना कॉमिक्स का
खजाना छुपा कर रखते थे, कभी कभार उनकी कोई फटी पुरानी कॉमिक्स मिल जाती तो
में कॉमिक्स के चित्रों को देख कर काफी उत्साहित हो जाता, मै चित्रों को देख कर कथा को समझने का पर्यत्न करता, फिर थोडा पढने का भी प्रयत्न करता।
धीरे धीरे मेरी
रूचि कथा और साहित्य में बढती गयी। मुझे आज भी याद है , मै दूसरी कक्षा
में था , जब मेरे पिताजी मेरे साथ रामपुर बुशेहर के बाज़ार में किसी काम के
लिए आये थे , मै चलते चलते एक पुस्तक की दूकान पर रुक गया , पिताजी ने
थोड़ा रुक कर देखा , और मै बस बोल पड़ा-"मुझे वो कॉमिक्स चाहिए ".. पिताजी
ने पहले तो मुझे टालते हुए कहा -" अरे रहने दो , कुछ और चाहिए तो बोलो," ..
मै भी अड़ियल था , सो मेरी बात मानते हुए मुझे दस रुपए की दो कॉमिक्स
खरीद कर दी। यह कॉमिक्स राज कॉमिक्स के एक नागराज नाम के चरित्र की थी ,
इस चरित्र ने पूरे विश्व से आतंकवाद को समाप्त करने की कसम खाई थी ... और
यह कहानी उसकी यात्रा के विषय में थी , सच कहु तो मुझे आतंकवाद या किसी
अन्य बात का ज्ञान नहीं था। काफी अचरज हुआ की, की संसार में अच्छे लोगो के
अलावा , बुरे लोग भी होते है , जो समाज को सदा खोखला करने की कोशिश में
लगे रहते है। मन में कई तरह के प्रशन आते , और इन चरित्रों में एक मित्र का
प्रतिबिम्ब दिखता ,जो मुझे सदा यह सिखाने की कोशिश करता , की सदा अछे का
साथ देना चहिये। मेरे मन में उत्सुकता का एक ऐसा आवेग उठा , की मुझे जहाँ
से कोई भी कथा मिलती में उसे जल्दी से पढ़ डालता , फिर उस कथा , उसके
चरित्रों के विषय में सोचते हुए समय निकल जाता। नंदन , चम्पक , नागराज ,
चाचा चौधरी , ध्रुव , पिंकी और पंजाब केसरी में आने वाली चित्र कथाएँ ,
जिनमे जादूगर मेंड्रक और गंजेलाल को पढ़ते हुए मेरा बचपन समाज को समझने लगा।
सच कहु तो अपने समकक्ष और समकालीन बच्चों के मुकाबले में आगे निकल गया था।
इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब हमारे विध्यालय में एक बार पढने की
प्रतियोगिता हुई , मै उस समय तीसरी कक्षा में था, और मैंने उस प्रतियोगिता
में अपना नामांकन किया। में मंच पर जाते हुए, काफी डरा हुआ था , और खासकर
में अपने प्रधानाचार्य से काफी डरता था। मेरे प्रधानाचार्य ने मुझे मंच
पर आमंत्रित किया , और हमारी हिंदी की पुस्तक में से एक अध्याय "अल्लादीन
का चिराग" से एक भाग पढने के लिए कहा, मै मंच पर चढ़ा, और पढना प्रारंभ
किया , में उस भाग को मात्र दो मिनट में पूरी तन्मयता एवं उचारण के साथ पढ़
गया। जब मैंने अंतरा समाप्त किया तो मेरे विद्यालय के करीब दो सॊ छात्रों
ने उत्साह के साथ तालिया बजाई। जब प्रतियोगिता का नतीजा आया तो मुझे
प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था , में बहुत खुश था , क्योंकि मेरे प्रतियोगी
मेरे वरिष्ठ थे।
उस दिन से मेरा उत्साह बढ़ा, मै अपनी बहन की किताबो को पढता (अपनी किताबो
को पढने के बाद ) .. हिंदी साहित्य का अध्यन करना भी मैंने प्रारंभ किया।
पिताजी के पास पंडित दिन दयाल उपाध्याय और अन्य महापुरुषों की जीवन कथाओ
का संग्रह था , उन सबको पढ कर मुझे काफी जानकारिया मिली, मै मात्र अपने
पाठ्यक्रम पर निर्भर नहीं कर , जहा से हो सके ज्ञान अर्जित करता। यह सब
मेरे लिए काफी ज्ञानवर्धक रहा .. भले ही पढाई में मुझे एक मध्यम छात्र का
दर्जा मिला, पर मुझे इस बात का दुःख नहीं था , बस इतना ज्ञान हो गया था कि
अछे अंक प्राप्त करना , हमें जीवन की परीक्षा मै सफलता की गारन्टी नहीं दे
सकता और पुस्तकें ही हमारी सची मित्र होती है।
आज हिंदी साहित्य को अंग्रेजी और अंतरताने से काफी नुक्सान पहुंचा
है। आज हिंदी चित्रकथाए और पुस्तके , पाठको की कमी की वजह से दम तोड़ रही
है। कई हिंदी प्रकाशन बंद हो गए है , मुझे चिंता इस बात की है , की हमारी
आने वाली पीढ़िया कही हमारे हिंदी साहित्य की महता को भूल ना जाये , आज भी कई हिंदी प्रकाशन जैसे , गीता प्रेस और राजा पॉकेट बुक्स हमारी हिंदी साहित्य की उमीदो को ज़िंदा रखे है।
किसी भी भाषा का अपना एक वर्ग होता है, पर आज
अंग्रेजी के साहित्यकारों की तुलना में , हिंदी के रचनाकार सिमट गए है , और
जो कुछ नए आ भी रहे है , वो धन और उत्साह की कमी की वजह से आगे नहीं बढ़
पाते।
फिर भी मुझे लगता है की हमारे वर्ग में ऐसे लोग है , जो हिंदी
और हिंदी साहित्य को दुर्लभता से बचाने में लगे हुए है। आईये हम सब हिंदी
साहित्य को बचाने के लिए एक जुट हो कर कदम उठाये ,.. हम अपनी जड़ो को भूल
कर स्वर्णिम भविष्य नहीं बना सकते। एक गीत की पंक्तिया याद आती है--
"हिंदी है हम , वतन है हिन्दुस्तान हमारा " जय हिन्द ..
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