चुनाव आते है , नेता भी आते है .. चुनाव चले जाते है और नेता तो फिर दिखते नहीं ..हाँ अखबारों में आरोप प्रत्यारोप करते हुए उनके बयान मिल जाते है। ज्यादातर प्रेस कांफ्रेंस या तो रेस्ट हाउस या किसी नामी होटल में आयोजित की जाती है .. हमारे पत्रकार बंधू वहां निमंत्रण मिलने पर पहुँच जाते है।थोड़ी गपशप और चाय नाश्ते का मज़ा लेकर प्रेस विज्ञप्ति को को भेज दिया जाता है। और यह प्रक्रिया पक्ष और विपक्ष के क्रियाशीलता को दिखाती है, क्यूंकि ज़मीनी स्तर पर काम हुआ हो या न हुआ हो , अखबारों में फोटो और बयान ज़रूर होने चहिये।
आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा , यह तो सब को ज्ञात है यहाँ ये सब लिखने का क्या ओचित्य है ? तो चलिए आप को एक परम सत्य से मिलाते है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर राज्य ,उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्य है जो हिमालय की गोद में बसे हुए है , यहाँ अधिकतर व्यक्ति या तो कृषि पर निर्भर करते है या सेनाओ में कार्यरत है , हालाँकि अब यहाँ के युवा पढ़ लिख कर बाहरी राज्यों और विदेश में नाम कमा रहे है, फिर भी अधिकतर युवा बेरोज़गारी के दंश को झेल रहे है। पहाड़ी राज्य होने के कारण यहाँ आय के साधन तो सिमित है साथ ही ड्रग माफिया भी कई वर्षो से यहाँ पांव पसारने लगा है। कुछ वर्ष पहले केंद्र सरकार ने हिमाचल को उन्नति का अवसर दिया जब हिमाचल प्रदेश में उद्योगों को अच्छी खासी रियायते दे कर, लुभावना अवसर दिया , जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप बहुत से उद्योगों ने हिमाचल में खूब पैसा लगा कर काफी बड़ी फेक्टरियाँ और प्लांट लगाये। सस्ती बिजली और रियायतों के कारण यहाँ एक तरफ तो उद्योग फले फुले और रोज़गार के भी बहुत सारे अवसर पैदा हुए। यह सब कुछ वर्षों तक ठीक चलता रहा.. मगर कुछ समय पहले अचानक केंद्र सरकार ने सब रियायतों की अवधि को घटा कर समाप्त कर दिया।
केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और राज्य में भारतीय जनता पार्टी का नेत्रत्व था। केंद्र सरकार के इस अचानक हुए फैसले से हर कोई स्तब्ध था। दुःख की बात यह थी की केंद्र सरकार में हिमाचली मंत्री आनंद शर्मा और वीरभद्र थे , जो हालाँकि कांग्रेस सरकार में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, परन्तु उनकी चुप्पी संदिग्ध थी। प्रश्न था क्या यह राजनीति से प्रेरित फैसला था, या इसके पीछे कोई और भी कारण था। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कई बार दावे किये कि केंद्र की कांग्रेस सरकार, भाजपा शाषित राज्यों को जान बुझ कर प्रताड़ित कर रही है। अब कौन सचा था और कौन झूठा यह तो पता नहीं , पर प्रेस कांफ्रेंसो का जो दौर शुरू हुआ वो भाजपा सरकार के जाने तक चलता रहा। हिमाचल के उद्योगिक क्षेत्र आज लगातार उद्योगों के पलायन के कारण , भुतिया कसबे बनते जा रहे है और बेरोज़गारी फिर अपने चरम पर है। आज भी प्रेस कांफ्रेंसें हो रही है , रोज पैसा बहाया जाता है मगर सिर्फ बयानो पर, काम तो शायद चुनाव से ८ महीने पहले शुरू होते है, क्यूंकि हम हिंदुस्तानी लोग वर्तमान में किये कार्यो को ही याद रखते है, और पिछले सभी घोटालो और दगाबाजियो को आसानी से भूल जाते है। नेता अक्सर चुटकी लेते है की जनता की यादाश्त बहुत कमज़ोर होती है। जो काफी हद तक सच भी है।
और अब "कोढ़ में खुजली" की तरह अचानक हिमाचल सरकार ने बिजली के दरो को सत्रह फीसदी बड़ा कर बचे खुचे उद्योगों की भी तालाबंदी की तयारी कर ली है , जो लगातार घाटा उठा रहे है। एक बात तो समझ में आती है की "राजनीति " इस देश की लगातार बदतर होती स्थिति का कारण नहीं है , बल्कि "घटिया राजनीति करने वाले नेता" इसका कारण है। अब किसी चुने गए नेता से ये शिकायत करें तो वो कहता है आवाज़ उठाओ और जब आवाज़ उठाओ, तो पुलिस को भेज कर डंडे मरवाए जाते है। प्रश्नकाल में प्रश्न उठाये जाते है जो स्थानीय स्तर की समस्याओ पर केन्द्रित होते हें, परन्तु विकराल समस्याओ जैसे बेरोगाज़री और इसके कारणों का ज़िक्र शायद ही कभी होता है। कह दिया जाता है हमारे पास संसाधन नहीं है , हम कुछ नहीं कर सकते या कहा जाता है विचार विमर्श चल रहा है।
तो अब क्या बेरोजगार भी नक्सलियों की तरह हथियार उठा ले ? क्यूंकि संसाधनों की कमी और बेरोजगारी भी नक्सली हिंसा का कारण है।सच कहु तो हम इस वास्तविकता के बहुत पास पहुँच गए है, बस फरक इतना है हमारे संस्कार हमें इसकी इज़ाज़त नहीं देते , परन्तु कब पापी पेट, इन त्रस्त बेरोजगारों को हिंसा का रास्ता दिखा दे , कोई बता नहीं सकता।