आखिरकार अमृत्य सेन भी बोले ... और वो भी नरेन्द्र मोदी और उनके विकास मॉडल पर बोले कि बिहार का विकास मॉडल ज्यादा बढ़िया है , 1959 के बाद से जो इंसान भारत चंद दफा सिर्फ मुंह दिखाई के लिए भारत आया हो , उसके यह शब्द निरर्थक लगते है , मेरे देश का प्रधानमंत्री कौन बनेगा , यह विदेशी लोग कैसे तय कर सकते है। यह ज़नाब विद्वान् है , तो क्यों भारत में आकर कांग्रेस की बदनीतियों की आलोचना नहीं कर सकते? अरे जब देश में चीन बार-बार अतिक्रमण का प्रयास कर रहा हो , जिस देश की सरकार नपुंसकता से संक्रमित हो , जिस देश की छदम साशक , एक इतालियन हो और रोज़ घोटाले उजागर हो रहे हो , इन सब के विषय में आज तक कभी कुछ कहा नहीं और अब अचानक हमेशा की तरह अछूत भाजपा के एक काबिल नेता पर आरोप लगाना और उनकी योग्यता पर प्रशनचिन्ह लगाना तो सिर्फ एक षड्यंत्र ही लगता है… भाजपा को कमज़ोर करने में पहले मीडिया, फिर कुछ ऐसे पत्रकार जो उनतीस वर्ष के अनुभव के बाद महाज्ञानी बन गए है , और अब यह भगोड़े विद्वान् शामिल हो रहे है .. आखिर क्यों भाजपा को मौका ना मिले? जब कोई कुछ अच्छा करता है , तो क्यों उसे वक़्त ना मिले?
भाजपा अगर साम्प्रदायिक सोच वाला दल है , तो कौन सी पार्टी नहीं है ? हमेशा मुसलमानों की बात होती है , हिन्दू के सशक्तिकरण पर बात करना ही क्या भाजपा का अछूत होने का कारण है ? कांग्रेस ,जडीयु ,बसपा ,आरजेडी, तृणमूल यह सब मुसलमानों के रहनुमा है -- यह कैसे साम्प्रदायिक न हुए ?
सीबीआई का इस्तेमाल बंसल को बचाने और मोदी को फंसाने में किया गया, क्या तब भी कोई बोल बोला? अरे सोनिया इटली लौट जाएगी , चीन के कब्जे में हिन्दुस्तान का आधे से ज्यादा का हिस्सा चला जायेगा , अगर हम अब भी सोये रहे .. हर हिन्दुस्तानी समझदार है, पर ऐसी समझदारी की तो ऐसी की तैसी जो कांग्रेस और उसकी तानाशाही को स्वीकार कर बेठा है। अब मुसलमानों को भी कांग्रेसी बुर्के को उतार फेंकना चाहिए , क्यूंकि खुद को उग्रवादी कहलाने से अगर बचना है , तो समानता की बात करनी होगी , ना की अल्पसंख्यक आरक्षण को लेकर संसद में हंगामा करना। जो समुदाय एक हज़ार साल से साथ रहते आये है , वो आगे भी रह सकते है, और इसका सर्टिफिकेट हमें कोई कांग्रेस या भगोड़ा विद्वान् नहीं दे सकता...
और फिर भी अगर और ज्यादा गरीबी चाहिए , तो शौक से गाँधी परिवार नाम के दानव को फिर सत्ता सौंप देनी चाहिए , ताकि भारत पाकिस्तान में जो अंतर है वो भी समाप्त हो जाये, क्यूंकि लोग भुखमरी नहीं , दंगो से मरेंगे ,जिनके समाचार कांग्रेसी राज्यों में होने के कारण दबा दिए जाते है, भारतीय इतिहास में सिर्फ 2002 के दंगे नहीं हुए ,1984 में भी हुए है, जिसका इन्साफ आज तक सिख भाइयो को नहीं मिल पाया , आज असम में दंगो की कोई बात नहीं करता। हाँ जो विकास और राष्ट्रीय एकता की बात करता है , उसे देशद्रोही साबित करने में प्रेस और मीडिया और सीबीआई की तिकड़ी पुरे जोर शोर से लगी हुई है।
सच कहु तो बहुत घुटन होती है , अपनी मीडिया और प्रेस का यह हाल देख कर , रोने का भी मन करता है जब हमारे समाज का प्रबुद्ध वर्ग भी देश को उठाने के बजाय , सरकार के तलवे चाटते हुए दीखता है। आज एक प्रयास मेरा भी है जो में अपने आस पास के लोगो को जगाना चाहता हु , काश यह समाज इन दुष्ट नेताओ और भगोड़े विद्वानों और अटतस्थ पत्रकारों के चंगुल से बहार आ सके....
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