1) छत पर अछी तरह झाडू लगाए.. मिट्टी पूरी तरह से साफ कर दे..(समय shaam 4 से 7 बजे)
2)अगर छत पर काले रंग की kaai उगी है तो उसे लोहे के ब्रश से रगड़ कर निकाले, क्यूँकि चुना और fevicol मिट्टी पर पकड़ नहीं बना सकते, छत एक दम साफ और चिकनी होने पर ही चुना टिक पाता है..(समय shaam 4 से 7 बजे)
3)अब छत को खुले पानी से धोए और सारी बची हुई मिट्टी को धो डालिए , वाईपर से और तिल्ली वाला झाडू प्रयोग करे..समय सुबह 5 से 6 बजे)
4) छत कुछ पानी को सोख लेगी और अतिरिक्त पानी को हटा कर 1 घंटा सूखने दे.
5) धूप खिलने से पहले ठंडे चुने की 10 किलो और narlock (favicol) के 1 किलो के हिसाब से पानी में मिला ले.. अछी तरह घोलने के बाद छत पर पहली परत लगाइए.. चुने को वाईपर या पेंट ब्रश से लगाया जा सकता है..
6)पहली परत को 2 घंटे तक सूखने दें.. फिर दोबारा दूसरी परत लगाए. उसे 14 घंटे तक सूखने दे.. दूसरी परत की मोटाई ज्यादा रखिए..
7)यदि आवश्यक हो तो तीसरी परत लगाई जा
सकती है..
चुने को लगाते समय आँख और त्वचा को ढक कर रखे..
अच्छे नतीज़े के लिए, घर की बाहरी दीवारो को सफेद रखे,
Results :- नालागर में बाहर का तापमान 38 डिग्री होने पर छत बिल्कुल गरम नहीं थी और घर का तापमान लगभग 26 डिग्री पर था, वातानुकूलित यंत्रों की आवश्यकता नहीं थी और बिना छत के पंखों से भी घर काफी आराम दायक था..
पहले यदि बाहर 38 डिग्री तापमान होता था तो घर का तापमान 40 डिग्री तक पहुंच जाता था .
लागत :- चुना 100 rupees 10 किलो मिलता है कुल 180 किलो चुना लगा (1800 रुपए). कुल 18 किलो narlock adhesive लगा.. कुल 3960 रुपए. 600 रुपए दिहाड़ी मज़दूर
Total :- 6360 रुपए लागत..
हर दिन 50 यूनिट बिजली की बचत हुई यानी 1500 यूनिट मासिक.. यानी 7500 रुपए महीना की बचत .
अगर हर घर को इस तरह रंग दिया जाए तो हम सालाना 1 लाख करोड़ की बिजली की बचत कर सकते हैं..
मुझसे आप sandeepbharmoria@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं..
Monday, April 29, 2019
Friday, August 31, 2018
Thursday, August 16, 2018
Wednesday, June 20, 2018
मैं कठिन हू,
मुझे समझना उतना ही कठिन है.. जितना भूखे का रोटी को निगलना , मुझे भुलाना , उतना ही कठिन है.. जितना खुद को भुलाना .. मुझमे कोई बात हो या ना हो, मेरी किसी बात को भूला पाना कठिन है.. बहुत कठिन है..
इसलिए मुझे समझो मत.. मेरे हो कर मुझ में अवशोषित हो जाओ.. बहुत सरल है, बहुत सरल है.. मुझे मन से समझो, या मन में समझो.. सरल है बहुत सरल है.. ना समझो तो कठिन है बहुत कठिन है..
इसलिए मुझे समझो मत.. मेरे हो कर मुझ में अवशोषित हो जाओ.. बहुत सरल है, बहुत सरल है.. मुझे मन से समझो, या मन में समझो.. सरल है बहुत सरल है.. ना समझो तो कठिन है बहुत कठिन है..
Tuesday, April 3, 2018
It was me!!
Alone I sat, lost in thought profound,
Much I'd gained, or so I found,
Yet a hollow shadow did appear,
A reflection of myself, once near.
Shocked and awed, my heart did race,
No longer could I find my place,
A shadow, a whisper, a lingering dread,
I sought to peer inside my head.
Within my depths, a world revealed,
Its secrets, pain, and beauty concealed,
A window to my soul did gleam,
A paradox both sad and serene.
I was, I wasn't - a duality,
A union of worlds, in synchrony,
The essence of me, the universe aligns,
In every moment, as space and time entwines.
Saturday, March 24, 2018
में अब भी मुस्कुराती हु..
में अब भी मुस्कुराती हु,
सोच के कुछ ना कुछ हंस ही जाती हु,
मुस्कुराना कोई मजबूरी नहीं है,
प्यार जताना भी जरूरी नहीं है,
दूसरो से तो जीत लेती हु,
अक्सर अपनो से हार जाती हूँ ,
कुछ चीजें मुझे आज भी गुदगुदाती है,
शरारतें तो आज भी उतनी ही आती हैं,
अब भी माँ की डांट, पापा की छाँव में हो आती हूँ.
बस रुक सी गयी हूँ, समझदारी के जंजाल में,
मग़र कभी कभी बचपना भी दिखलाती हूँ,
बचपन के कोई डर अब, सताते नहीं है,
मगर अब जिंदगी के सच, कम डराते नहीं है..
किसी का में प्यार हू, किसी के लिए माँ भी हू,
बहू और बेटी की अदाकारी, खूब निभाती हु,
पर अक्सर अपनो से हार जाती हूँ
रोना मुझे कमजोरी सा क्यू लगता है,
दिल किसी से बांटने में डर सा लगता है,
पर होंसला कम होता नहीं, गिरती हू रोज़,
पर खड़ने से अब डर, लगता नहीं है,
में अब भी मुस्कुराती हु, बस कभी कभी अपनो से हार जाती हूँ..
सोच के कुछ ना कुछ हंस ही जाती हु,
मुस्कुराना कोई मजबूरी नहीं है,
प्यार जताना भी जरूरी नहीं है,
दूसरो से तो जीत लेती हु,
अक्सर अपनो से हार जाती हूँ ,
कुछ चीजें मुझे आज भी गुदगुदाती है,
शरारतें तो आज भी उतनी ही आती हैं,
अब भी माँ की डांट, पापा की छाँव में हो आती हूँ.
बस रुक सी गयी हूँ, समझदारी के जंजाल में,
मग़र कभी कभी बचपना भी दिखलाती हूँ,
बचपन के कोई डर अब, सताते नहीं है,
मगर अब जिंदगी के सच, कम डराते नहीं है..
किसी का में प्यार हू, किसी के लिए माँ भी हू,
बहू और बेटी की अदाकारी, खूब निभाती हु,
पर अक्सर अपनो से हार जाती हूँ
रोना मुझे कमजोरी सा क्यू लगता है,
दिल किसी से बांटने में डर सा लगता है,
पर होंसला कम होता नहीं, गिरती हू रोज़,
पर खड़ने से अब डर, लगता नहीं है,
में अब भी मुस्कुराती हु, बस कभी कभी अपनो से हार जाती हूँ..
Monday, January 15, 2018
Maruti Swift Vxi Fuse settings (internal)
Today I faced lot of trouble due to fuse settings in my Swift Vxi 2014 model. I don't want any other guy to face similar issue. Hence posting the internal fuse settings for Swift Vxi 2014.
Hope this will help..
Thanks,
Sandeep Thakur
Hope this will help..
Thanks,
Sandeep Thakur
Monday, December 4, 2017
Title: Overcoming Latent Tuberculosis Infection and Depression: A Personal Journey
In January 2008, I began a day like any other, waking up and preparing for work. I hailed a cab to my office from Noida Sector 12/22. Upon arriving at the office, I noticed an unusual swelling in my neck. Although it wasn't painful, it looked quite abnormal. Concerned, I decided to inform my manager and request leave to visit my hometown and seek medical advice.
After discussing my symptoms with my parents, who initially dismissed them, I visited a retired physician and ENT specialist in my hometown. He examined my swollen neck and referred me to a nearby Radhaswami Foundation Hospital for further investigation.
At the hospital, the doctor conducted a biopsy of my lymph node to test for possible infections. Although I was unfamiliar with the medical terminology, I became increasingly worried when the results came back positive. The doctor informed me that I had contracted a passive infection of tuberculin bacteria, which would require 8-9 months of treatment. Despite the initial shock, the doctor reassured me that 98% of the Indian population has a passive tuberculosis infection and that I wouldn't be contagious during my treatment.
Already battling depression, this diagnosis only heightened my feelings of despair and loneliness. After a tearful night, I sought comfort from my brother-in-law, who tried to reassure me that I would recover in time. I began my treatment at a hospital DOT center, where I was given a strict regimen of eight tablets to be taken every morning. The importance of adhering to this regimen was emphasized, as any deviation could render the infection untreatable.
Although it is still difficult for me to recount the challenges I faced during this time, I have gained a deep sense of compassion for others dealing with illness or life-threatening conditions. It is crucial to educate ourselves about conditions such as latent TB infection and offer support and understanding to those affected.
For more information on latent TB infection, please visit: https://www.tbfacts.org/latent-tb/
Remember to help and guide those who are suffering. Be informed, understanding, and compassionate in your response.
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1) छत पर अछी तरह झाडू लगाए.. मिट्टी पूरी तरह से साफ कर दे..(समय shaam 4 से 7 बजे) 2)अगर छत पर काले रंग की kaai उगी है तो उसे लोहे के ब्रश ...