में अब भी मुस्कुराती हु,
सोच के कुछ ना कुछ हंस ही जाती हु,
मुस्कुराना कोई मजबूरी नहीं है,
प्यार जताना भी जरूरी नहीं है,
दूसरो से तो जीत लेती हु,
अक्सर अपनो से हार जाती हूँ ,
कुछ चीजें मुझे आज भी गुदगुदाती है,
शरारतें तो आज भी उतनी ही आती हैं,
अब भी माँ की डांट, पापा की छाँव में हो आती हूँ.
बस रुक सी गयी हूँ, समझदारी के जंजाल में,
मग़र कभी कभी बचपना भी दिखलाती हूँ,
बचपन के कोई डर अब, सताते नहीं है,
मगर अब जिंदगी के सच, कम डराते नहीं है..
किसी का में प्यार हू, किसी के लिए माँ भी हू,
बहू और बेटी की अदाकारी, खूब निभाती हु,
पर अक्सर अपनो से हार जाती हूँ
रोना मुझे कमजोरी सा क्यू लगता है,
दिल किसी से बांटने में डर सा लगता है,
पर होंसला कम होता नहीं, गिरती हू रोज़,
पर खड़ने से अब डर, लगता नहीं है,
में अब भी मुस्कुराती हु, बस कभी कभी अपनो से हार जाती हूँ..
Saturday, March 24, 2018
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