Monday, June 17, 2013

मुफ्त की चाय

ठाकुर साहब और शर्मा जी बरसों पुराने दोस्त हैं  , और अक्सर शाम को गांधी चौक की एक  किरयाने की दूकान में गपशप मारने पहुँच जाते हैं। ज़िन्दगी भर दोनों दोस्त शायद ही कभी किसी राजनीतिक  दल से जुड़े , पर रिटायरमेंट के बाद, समय गुजारने  के लिए देश की राजनीति पर घंटों बहस  करते, और दुकानदार दोनों की  हाँ में हाँ मिलाता और चुपचाप मुस्कुराता रहता। दुकानदार को शाम ढले दोनों का इंतज़ार रहता है , क्यूंकि कम से कम चार  कप मुफ्त की चाय मिल जाती है और  वक़्त भी कट जाता है। 
                                       परन्तु  जब आज ठाकुर साहब दूकान में पहुंचे तो आज  माजरा कुछ बदला हुआ था , ठाकुर साहब आज कुछ  उदास  लग रहे थे,  हाथो में छाता लेकर वे चुपचाप खड़े हो कर शर्मा जी का इंतज़ार कर रहे थे , उनको देख कर दुकानदार अशोक बोला- "अरे ठाकुर साहब आईये- आईये बेठिये, शर्मा जी भी आते होंगे "...  ठाकुर साहब ने  कुछ  बिना कहे, बस मुस्कुरा कर अशोक की और देखा। अशोक ने भांप लिया था की आज ठाकुर साहब कुछ तो परेशान हैं, पर उसे ये भी पता था की वे सिर्फ शर्मा जी से ही अपनी ज़िन्दगी के दुःख दर्द को बांटते  है। अभी अशोक सोच ही रहा था की  वो  कुछ कहे , शर्मा जी भी आ पहुंचे । 
                                      शर्मा जी तो आज अपनी  धुन में थे, आते ही बस शुरू  हो गए- "अब बताओ , बज गया न भाजपा का बाजा !!" शर्मा जी तो पूरे  जोश में थे, अभी ठाकुर साहब  कुछ कह  पाते, शर्मा जी बोले -"अरे भाजपा का एनडीए तो चुनावो से पहले ही टूट गया,चले थे सरकार बनाने!!" शर्मा जी की बातो में कटाक्ष और व्यंग झलक रहा था। परन्तु ठाकुर साहब ने कोई उत्तर नहीं  दिया, और चुप चाप  सुनते रहे।जबकि होता यूँ  था, की बहस शुरू हो  जानी  चाहिए थी , पर आज अशोक और शर्मा जी दंग  थे, क्यूंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। 
                                            शर्मा जी ने ठाकुर  साहब  की  आँखों में देखा, और पूछा - "यार सब ठीक ठाक तो है ? आज कुछ गुमसुम लग रहे हो".. यह सुनते ही ठाकुर साहब का चेहरा भाव् विहिल हो आया, ना जाने कब उनकी आँखों में नमी भर आई, जैसे वो खुद चाह रहे थे, की कोई उनका हाल पूछे, मुश्किल से खुद को सँभालते हुए बोले -  "आज डॉक्टर के पास गया था,वो  मस्तिष्क की जांच करवाने के लिए,  कुछ टेस्ट कल हुए थे, आज रिपोर्ट आ गयी है"... इतना कह कर वो चुप हो गए और शुन्य में ताकते हुए महसूस हुए। शर्मा जी को आत्मग्लानि हो रही थी। व्यग्रता से शर्मा जी ने किसी अनहोनी की आशंका से शंकित हो कर पुछा- "अच्छा!!क्या कहा डॉक्टर ने ? अरे सब ठीक तो है ना?" 
                    "शर्मा जी, मुझे मस्तिष्क में ट्यूबर क्लोसिस है, और दुसरे  चरण में है "- ठाकुर साहब सिर झुका कर बोले, " मै  अब फिर यहाँ नहीं आऊंगा, डॉक्टर ने मुझे आराम करने  को कहा है, और जब से ये बात बहु को पता चली है, उसने तो बात करना भी बंद कर दिया है, और आज सुबह मैंने बेटे को बहु से कहते सुना की पापा से बच्चो और खुद को दूर रखना, जल्दी ही में इनके अलग रहने का कुछ करता हूँ और तो और आज तो बहु ने चाय तक को नहीं पूछा। रोज़ समक्ष  और आयशा(पोता -पोती) मेरे पास आ कर कहानियां सुनने  आते थे, पर आज नहीं आये".. 
              इस पर शर्मा जी और अशोक एक दम सन्न  रह गए थे। रिटायरमेंट के बाद ठाकुर साहब अपने बेटे के यहाँ रह रहे थे, और यह मकान भी ठाकुर साहब ने अपने बेटे को खरीद कर दिया था, पत्नी का देहांत हुए ७ साल हो गए थे, और अब उनकी दुनिया में चंद लोग रह गए थे , जिनसे वो मिलते जुलते थे , और बीमारी के पता चलने के बाद ठाकुर साहब को अपनी दुनिया सिमटते हुए नज़र आ रही थी, शायद इसीलिए वो बहुत दुखी थे।
          शर्मा जी ने अपने आप को सँभालते हुए कहा -" अरे बस इतनी सी बात !!! यार पहली बात तो यह है की टीबी शरीर में कही भी हो सकता है , और हर टीबी संक्रामक हो यह जरुरी नहीं है। रही बात दिमाग के टीबी की, तो जहा तक मुझे पता है टीबी की यह किस्म  संक्रामक  बिलकुल नहीं होती। और ये तो सच है की तुमको आराम करना चाहिए और तुरंत इसका इलाज़ शुरू करना चाहिए, जो तुमने कल से शुरू कर ही दिया है। बाकी ७ महीने की दवाई को रोजाना बिना भूले खाना, तुम एक दम ठीक हो जाओगे। " 
         शर्मा जी ने उत्साहित हो कर कहा -" रही बात तुम्हारे बहु बेटे  की तो शायद इतना पढ़ा लिखा होने के बाद भी वो इतनी गंवार बात कैसे कर सकते है। मै समझाऊंगा उन दोनों को! तुम चिंता मत करो, तुम भले ही यहाँ ना आओ, अरे हम आ जायेंगे तुम्हारे पास चाय पीने के लिए, आखिर अगले चुनाव की चर्चा कौन करेगा ? मोदी और नतिश  हो  या  एनडीए बनाम यूपीए ?"
      ठाकुर साहब की आँखों से अश्रु बह निकले, वे उठे और शर्मा जी को गले लगा लिया, दोनों मित्र भावुक हो उठे। ठाकुर साहब पर इन बातो का इतना गहरा असर हुआ की वो सारा दुःख और मानसिक तनाव का बोझ भूल ही गए। अशोक भी दोनों की मित्रत्ता को देख कर स्तब्ध और प्रसन्न था, शायद ही उसने कभी इन दोनों की मित्रत्ता की गहराई को समझा था। 
         उत्साह और प्रसन्ता में अशोक ने जोर से चाय वाले को आवाज दे कर कहा - "अरे भगतु !!! ३ स्पेशल चाय!! जल्दी ले कर आजा , आज पैसे में दूंगा। "  और उसकी इस बात पर तीनो एक साथ ठहाका मार कर हंस पड़े,  मानो कुछ हुआ ही ना हो,.....
           
            

Tuesday, June 4, 2013

घटिया राजनीति से त्रस्त हिमाचली उद्योग और बेरोजगार

चुनाव  आते है , नेता भी आते है .. चुनाव चले जाते है और नेता तो फिर दिखते नहीं ..हाँ अखबारों में आरोप प्रत्यारोप  करते हुए उनके बयान  मिल जाते है। ज्यादातर प्रेस कांफ्रेंस  या तो रेस्ट हाउस या किसी नामी होटल में आयोजित की जाती है .. हमारे पत्रकार बंधू  वहां निमंत्रण मिलने पर  पहुँच जाते है।थोड़ी गपशप और चाय नाश्ते का मज़ा लेकर प्रेस विज्ञप्ति को   को भेज दिया जाता है।  और यह प्रक्रिया पक्ष और विपक्ष के क्रियाशीलता को दिखाती है, क्यूंकि  ज़मीनी स्तर पर काम हुआ हो या न हुआ हो , अखबारों में फोटो और बयान ज़रूर होने चहिये।
आपके मन में प्रश्न उठ रहा होगा , यह  तो सब को ज्ञात है यहाँ ये सब लिखने का क्या ओचित्य है ? तो चलिए आप को एक परम सत्य से मिलाते है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू कश्मीर राज्य ,उत्तरी भारत के पहाड़ी राज्य है जो हिमालय की गोद में बसे हुए है , यहाँ अधिकतर व्यक्ति या तो कृषि पर निर्भर करते है या सेनाओ में कार्यरत है , हालाँकि  अब यहाँ के युवा पढ़ लिख कर बाहरी राज्यों और विदेश में नाम कमा  रहे है, फिर भी अधिकतर युवा बेरोज़गारी के दंश को झेल रहे है। पहाड़ी राज्य होने के कारण यहाँ आय के साधन तो सिमित है साथ ही ड्रग माफिया भी कई वर्षो से यहाँ पांव पसारने लगा है। कुछ  वर्ष पहले केंद्र सरकार ने हिमाचल को उन्नति का अवसर दिया जब हिमाचल प्रदेश में उद्योगों को अच्छी खासी रियायते दे कर, लुभावना अवसर दिया , जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप बहुत से उद्योगों ने हिमाचल में खूब पैसा लगा कर काफी  बड़ी फेक्टरियाँ और प्लांट लगाये। सस्ती बिजली और रियायतों के कारण यहाँ एक तरफ तो उद्योग फले फुले और रोज़गार के भी बहुत सारे अवसर पैदा हुए। यह सब कुछ वर्षों तक ठीक चलता रहा.. मगर कुछ समय पहले अचानक केंद्र सरकार ने सब रियायतों की अवधि को घटा कर समाप्त कर दिया।

                                  केंद्र में कांग्रेस सरकार थी और राज्य में भारतीय  जनता पार्टी का नेत्रत्व था। केंद्र सरकार के इस अचानक हुए फैसले से हर कोई स्तब्ध था। दुःख की बात यह थी की केंद्र सरकार में हिमाचली मंत्री आनंद शर्मा और वीरभद्र थे , जो हालाँकि कांग्रेस सरकार में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व  कर रहे थे, परन्तु उनकी चुप्पी संदिग्ध थी। प्रश्न था क्या यह राजनीति से प्रेरित फैसला था, या इसके पीछे कोई और भी कारण  था। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कई बार दावे किये कि  केंद्र की कांग्रेस सरकार,  भाजपा शाषित  राज्यों को जान बुझ कर   प्रताड़ित कर रही है। अब कौन सचा था और कौन झूठा यह तो पता नहीं , पर प्रेस कांफ्रेंसो का जो दौर शुरू हुआ वो भाजपा सरकार के जाने तक चलता रहा। हिमाचल के उद्योगिक क्षेत्र आज लगातार उद्योगों के पलायन के कारण , भुतिया कसबे बनते जा रहे है और बेरोज़गारी फिर अपने चरम पर है। आज भी प्रेस कांफ्रेंसें  हो रही है , रोज पैसा बहाया जाता है मगर सिर्फ बयानो पर, काम तो शायद चुनाव से ८ महीने पहले  शुरू होते है, क्यूंकि हम  हिंदुस्तानी  लोग वर्तमान में किये कार्यो को ही याद रखते है, और पिछले सभी घोटालो और दगाबाजियो को आसानी से भूल जाते है। नेता अक्सर चुटकी  लेते है की जनता की यादाश्त  बहुत कमज़ोर होती है। जो काफी हद तक सच भी है।  
 
                        और अब "कोढ़ में खुजली" की तरह  अचानक हिमाचल सरकार ने बिजली के दरो को सत्रह  फीसदी बड़ा कर बचे खुचे उद्योगों की भी तालाबंदी की तयारी कर ली है , जो लगातार घाटा उठा रहे है। एक बात तो समझ में आती है की "राजनीति " इस देश की लगातार बदतर होती स्थिति का कारण  नहीं है , बल्कि  "घटिया राजनीति करने  वाले नेता"  इसका कारण है। अब किसी चुने गए नेता से ये शिकायत करें तो वो कहता है आवाज़ उठाओ और जब आवाज़ उठाओ, तो पुलिस को भेज कर डंडे मरवाए जाते है। प्रश्नकाल में प्रश्न उठाये जाते है जो  स्थानीय स्तर की समस्याओ पर केन्द्रित होते हें, परन्तु विकराल समस्याओ जैसे बेरोगाज़री और इसके कारणों का ज़िक्र शायद ही कभी होता है। कह दिया जाता है हमारे पास संसाधन नहीं है , हम कुछ नहीं कर सकते या कहा जाता है विचार विमर्श चल रहा है।   
 
                तो अब क्या बेरोजगार भी नक्सलियों की तरह हथियार  उठा ले ? क्यूंकि संसाधनों की कमी और बेरोजगारी भी नक्सली हिंसा का  कारण है।सच कहु तो  हम इस वास्तविकता के बहुत पास पहुँच गए है, बस फरक इतना है हमारे संस्कार हमें इसकी इज़ाज़त नहीं देते , परन्तु कब पापी पेट, इन त्रस्त  बेरोजगारों को हिंसा का रास्ता दिखा दे , कोई बता नहीं सकता।

Secret of Universe

  Secret our universe... 10 Directions, 26 dimensions 18 Directions, No Dimension can exist 36 Dimensions, no direction can exist.. I dont h...